स्रोतों का कुशलतापूर्वक एवं न्यायिक रूप से इस प्रकार समन्वित प्रयोग किया जाता है ताकि उत्पादन लक्ष्य पूर्ण हो सके तथा मृदा स्वास्थ उत्तम रहे व पर्यावरण भी सुरक्षित रहे।" "The Integrated Nutrient Management (INM) refers to efficient and judicious use of all the major sources of nutrients in an integrated manner so as to get maximum economic yield without any deteriorating effect on soil health and environment."
एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन का मुख्य उद्देश्य मृदा उर्वरता व संरचना को संरक्षित कर दीर्घ काल तक टिकाऊ फसल उत्पादन (Sustainable crop production) करना है ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को अनवरत् खाद्यान्न सुलभ होते रहें। एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन के अवयव (Components of INM)
पादप पोषक तत्वों के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं-
1. रासायनिक उर्वरक (Chemical fertilizers )
2. स्थूल कार्बनी / जैव खादें (Bulky organic manures)
3. हरी खाद (Green manures)
4. सान्द्र कार्बनी खादें (Concentrated organic manures)
5. जैव उर्वरक / टीके (Bio-fertilizers) 6. पादप व जन्तु अवशेष (Plant and animal's residues)
7. पुनर्चक्रित कार्बनिक व अकार्बनिक अवशेष (Recycled organic and inorganic wastes)
सघन कृषि तथा उच्च उत्पादन लक्ष्यों को पूर्ण करने में उपरोक्त कोई भी स्रोत अकेले फसलों की पोषक तत्वों की आपूर्ति करने में सक्षम नहीं है। इसके लिये रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग अनिवार्य है परन्तु इनको अन्य स्रोतों के साथ इस प्रकार से समन्वित करना होगा ताकि संतुलित पोषण सुनिश्चित हो सके व मृदा व पर्यावरण भी सुरक्षित रहे।
समाकलित पोषक तत्व प्रयोग के संभावित उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(1) रासायनिक उर्वरक व स्थूल कार्बनिक खादों का समन्वित प्रयोग fertilizers with bulky organic manures) - रासायनिक उर्वरक अथवा कार्बनी खादों का पृथक्-पृथक् प्रयोग करने पर सामान्यतः फसलों की पोषक तत्वों की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती है। यदि उर्वरक व गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट की पर्याप्त मात्रा रासायनिक उर्वरकों के साथ प्रयोग की जाये तो इससे मृदा उत्पादकता में तो वृद्धि होती ही है साथ ही साथ मृदा उर्वरता, मृदा के भौतिक-रासायनिक व जैविक गुणों में भी सुधार होता है। अनुसंधानों से पता चला है कि दोनों स्रोतों के संयुक्त प्रयोग से पोषक तत्वों की सुलभता में वृद्धि के साथ-साथ मृदा में कार्बनिक पदार्थ का स्तर भी बना रहता है तथा खादों का अवशिष्ट प्रभाव भी बढ़ता है। मृदा की भौतिक दशा ठीक बनी रहती है और लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रियाएँ भी सुचारू रूप से चलती रहती हैं। कार्बनिक खादों में प्रक्षेत्र अवशेष, पादप व जन्तु अवशेष, शहरी कम्पोस्ट, खलियाँ, गोबर गार, पुनः चक्रित अवशेष, पशुवधशालाओं के अवशेष, मुर्गी, मछली व समुद्री पक्षियों के अवशेष आदि को भी प्रयोग किया जा सकता है।
(2) उर्वरक व हरी खाद का संयुक्त प्रयोग (Combined use of fertilizers and manures) प्रमुख फसलों के उत्पादन में हरी खाद वाली फसलों द्वारा पोषण एक प्राचीन परम्परा रही है। सघन कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत हरी खाद की फसल उगाने का प्रचलन कम हो गया है। इसके विकल्प के रूप में फसल चक्र दो दाल वाली फसलों को सम्मिलित किया जा सकता है। हरी खाद की प्रमुख फसलों के रूप में सनई, ऊँचा, लोबिया, ग्वार आदि फसलों का प्रयोग किया जाता है। ये फसलें औसतन 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन मृदा में स्थिर कर देती हैं साथ ही साथ न्यून CN अनुपात का कार्बनिक पदार्थ मृदा में प्रदान करती है। मिट्टी में हरी खाद की फसल को पलटते समय 20% फॉस्फोरस (कुल आवश्यक मात्रा का) डाल देने पर मुख्य फसल की पैदावार में तो वृद्धि होती है, आगामी फसल को पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में सुलभ होते हैं तथा मृदा में कार्बनिक पदार्थ का उचित स्तर भी बना रहता है। हरी खाद की फसलों को मुख्य फसलों के साथ बोने से भी अपेक्षित लाभ होता है। इनके प्रयोग से वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण तो होता ही है साथ ही साथ कम विलेय व उच्च संयोजकता वाले तत्वों का निष्कर्षण भी अधिक होता है। green
(3) रासायनिक उर्वरक तथा जैव उर्वरकों का एकीकृत प्रयोग (Integrated use of • Chemical and Bio-fertilizers ) - जैव उर्वरकों का प्रयोग पोषक तत्वों की सुलभता में वृद्धि व नाइट्रोजन के यौगिकीकरण में वृद्धि हेतु किया जाता है। वर्तमान में जैव उर्वरकों का रासायनिक उर्वरकों के साथ प्रयोग अत्यन्त लाभकारी पाया गया है। जैव उर्वरकों में नाइट्रोजन यौगिकीकरण करने वाले तथा पोषक तत्वों को घोलने वाले जीवाणु होते हैं जो आसानी से सुलभ भी हैं और भी। राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, नीलहरित एल्गी, एजोला, एजोस्पाइरिलियम प्रमुख सूक्ष्म जीव है जिनके कल्चर (टीके) प्रमुखतः नाइट्रोजन स्थिरीकरण हेतु प्रयुक्त होते हैं। अनुकूल दशाओं में राइजोबियम द्वारा 50 से 100 किलोग्राम N प्रति हेक्टेयर स्थिर की जा सकती है। इसके अतिरिक्त फॉस्फेट घोलक जीवाणु (PSM, VAM) भी खनिज फॉस्फोरस को पौधों को सुलभ कराने में सक्षम हैं तथा इनका व्यापक प्रयोग किया जा रहा है। रासायनिक उर्वरकों के साथ जैव उर्वरकों के प्रयोग से उर्वरक उपयोग क्षमता में वृद्धि होती है तथा मृदा उत्पादकता बढ़ने के साथ-साथ मृदा की भौतिक दशा में भी सुधार होता है।
(4) रासायनिक उर्वरक, कार्बनिक खाद व जैव उर्वरकों का समन्वित प्रयोग (Integrated use of fertilizers, organic manures and bio-fertilizers ) — आधुनिक अनुसंधानों से यह स्थापित हो चुका है कि रासायनिक उर्वरकों के साथ कार्बनिक खाद व जैव उर्वरक संयुक्त रूप से प्रयोग करने पर अधिक उत्पादन व आर्थिक लाभ होता है। फसल की आवश्यकता का तीन-चौथाई (75%) रसायनिक उर्वरक व एक-चौथाई (25%) कार्बनी खाद, हरी खाद व जैव उर्वरकों द्वारा प्रयोग करने से सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं। टिकाऊ खेती के परिप्रेक्ष्य में संतुलित पोषक तत्व उपयोग किया जाना चाहिए तथा अकार्बनिक व कार्बनिक दोनों स्रोतों को उचित मात्रा व अनुपात में प्रयोग किया जाना चाहिए। सबसे अधिक ध्यान मृदा में पोषक तत्व संतुलन व जैविक कार्बन स्तर को बनाए रखने पर देना चाहिए। समाकलित पादप पोषक तत्व प्रयोग (Use of Integrated Plant Nutrients)
देश में 'हरित क्रान्ति' के दौरान (1968-88) तथा उसके बाद से भी आज तक उर्वरकों का फसलों में अधिक प्रयोग किया गया है तथा जीवांश वाली खादों (FYM Compost, Greet Manure) का प्रयोग नहीं के बराबर अथवा बिल्कुल ही नहीं किया गया। इस कारण फसलों का N P, K, तत्वों के प्रति प्रभाव घटा। उपज में अब या तो गिरावट आ रही है
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