संकरण के मुख्य चरण लिखिये। Write the major steps of Hybridization?


संकरण (Hybridization)
संकरण सस्य सुधार की सबसे अच्छी, आधुनिक तथा वैज्ञानिक विधि है तथा इसके द्वारा अपनी इच्छानुकूल किस्म उत्पन्न की जा सकती है। विभिन्न लक्षणों वाले किन्हीं दो व्यक्तियों, पौधों अथवा जानवरों के आपस में संयोग (Mating or crossing) करने को संकरण कहते हैं। यद्यपि संकरण की क्रिया का ज्ञान बहुत प्राचीन काल से था परन्तु फसलों में सुधार करने के उद्देश्य से इसका प्रयोग 1900 ई० में मेण्डल के आनुवंशिकता के नियमों (Laws of inheritance) के पुन: अन्वेषण के बाद ही किया जाने लगा था क्योंकि मेण्डल के दोनों नियम विसंयोजन का नियम (Law of segregation) तथा स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of independent assortment) ही हमारी आनुवंशिकी तथा पादप प्रजनन विज्ञानों के आधार हैं। ये दोनों नियम केवल उस समय सही (Fit) होते हैं जबकि दो व्यक्तियों का संयोग फलद हो ace) तथा अर्द्धसूत्रण में गुणसूत्रों का व्यवहार नियमित हो। आधुनिक काल में संकरण विधि में बहुत अधिक प्रगति हुई है। सस्य सुधार की इस विधि में निम्नलिखित मुख्य चरण होते हैं- 

(1) संकरण के उद्देश्य का निर्धारण (Determination of the object of hybridization),

(2) सर्वेक्षण तथा पित्रों का चयन (Survey and choice of the parental material), 

(3) चयनित पित्रों का सम्वर्द्धन (Culture of the chosen parents),

(4) संकरण की विधि (Technique of hybridization), (5) संकरण से प्राप्त संकर की भावी नियोजित पीढ़ियों में से ऐच्छिक लक्षणों की दृष्टि से समयुग्मजी पौधों का चयन (Selection of the homozygous plants having desirable characters from the segregants of the hybrid material obtained from the hybridization)।

संकरण के उद्देश्य

संकरण के चार उद्देश्य होते हैं-

(1) जब किसी भी जनसमूह में चयन किया जाता है तो कुछ समय तक के सतत् चयन के बाद उस जन समूह में विविधता नहीं रहती है और विविधता की अनुपस्थिति में सस्य सुधार का कार्य बन्द हो जाता है अर्थात् सुधार के लिये जन समूह में विविधता का होना आवश्यक होता है। अतः संकरण द्वारा कृत्रिम रूप से विविधता उत्पन्न की जाती है ताकि ऐच्छिक संयोगों वाले पौधों का चयन किया जा सके।

(2) सभी ऐच्छिक लक्षण जैसे बीमारी तथा कीड़ों के प्रति रोधता, अधिक उपज देने की क्षमता तथा विभिन्न जलवायु की दशाओं में अनुकूलित (Adapt) होने की क्षमता आदि एक ही किस्म में न होकर कई एक किस्मों में बिखरे पाये जाते हैं। अतः संकरण का मुख्य उद्देश्य दो अथवा अधिक किस्मों में बिखरे हुए ऐच्छिक लक्षणों को एक ही किस्म में लाना होता है। 

(3) कभी-कभी आनुवंशिक कारकों के पुनः संयोग से नये तथा ऐच्छिक लक्षण उत्पन्न हो जाते है। गुणात्मक लक्षणों में अतिक्रामी विसंयोजन (Transgressive segregation) होते हैं जिससे अधिक उत्तम पौधे मिल सकते हैं।

(4) संकर ओज का उपयोग करने के लिये।

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