(1) सहकारी खेती स्वतन्त्र और स्वशाषित आर्थिक इकाइयों का संघ होती है, जब कि सामूहिक खेती मे वे सदस्य होते हैं, जो अपना आर्थिक स्वशासन खो बैठते हैं।
(2) सामूहिक प्रयत्न में व्यक्तिगत प्रयत्नों का अस्तित्व नहीं रहता, उसके स्थान पर संयुक्त प्रयत्न की स्थापना होती है। लेकिन सहकारी प्रयत्न सदस्यों की व्यापारिक कार्यवाहियों और उद्यमों का समर्थक है।
(3) सहकारी कृषि में सदस्यों का अपनी भूमि पर अधिकार रहता है, लेकिन सामूहिक कृषि में व्यक्तिगत स्वामित्व न होकर सम्पूर्ण समूह का अधिकार होता है।
(4) सहकारी खेती में लाभांश का वितरण सदस्यों द्वारा शामिल की गई भूमि, सम्पत्ति, पशु आदि की हैसियत के अनुपात से होता है, लकिन सामूहिक खेती में लाभांश का निश्चय किए गए कार्य के अनुपात के आधार पर होता है।
(5) सहकारी खेती में सदस्यता स्वेच्छा से होती है, जबकि सामूहिक खेती में आवश्यक रूप से सदस्य बनना पड़ता है।
(6) सहकारिता में यदि सदस्य खेत पर कार्य करता है तो उसे लाभांश के साथ-साथ पारिश्रमिक भी मिलता है, लेकिन सामूहिक कृषि में सदस्यों को श्रम के प्रतिफल के अलावा कुछ नहीं मिलता।
(7) सहकारिता में प्रत्येक सदस्य अपनी सदस्यता से त्याग-पत्र देने के लिए स्वतन्त्र होता है और सदस्य को फार्म का कार्य शुरु करने के लिए लगायी धनराशि तथा भूमि वापिस कर दी जाती है, जबकि सामूहिक खेती में सदस्य ऐसा नहीं कर सकता।
(8) सहकारी खेती में प्रबन्ध प्रजातन्त्रीय प्रणाली के आधार पर होता है, लेकिन सामूहिक खेती में प्रबन्ध, उत्पादन व फार्म की अन्य विधियाँ सरकारी निर्देशन में की जाती हैं।
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