श्री कृष्ण विचार

1.श्री कृष्ण कहते हैं, 

जिनका मिलना भाग्य में लिखा होता है, भगवान उनको किसी न किसी रूप में मिला ही देते है .. !!

2. तेरे बाद किसी को प्यार से ना देखा हमने ! हमें इश्क़ का शौक है, आवारगी का नही !!

3. जिन्दगी बहुत आसान हो जाती है जब परखने वाले नही समझने वाले मिल जाते है.

4. दो प्रकार के व्यक्ति संसार में स्वर्ग के भी ऊपर स्थिति होते हैं एक जो शक्तिशाली होकर क्षमा करता हैं और दूसरा जो दरिद्र होकर भी कुछ दान करता रहता है।

5. जब बहुत कुछ होता है कहने को, तब इंसान अक्सर खामोश रहने लगता हैं.

6. प्रेम पीपल के बीज के समान है। जहाँ संभावना नहीं वहाँ भी पनप जाता है.!

7. सहने वाला जब जुल्म सहकर भी मुस्कुरा रहा हो तो उस इंसान का बदला स्वयं श्रीकृष्ण लेते हैं..!

8. घमंड के लिए नहीं बल्कि आत्मसम्मान के लिए कभी कभी जिंदगी में कुछ लोगों का साथ छोड़ना पड़ता हैं..!

9. जो देर से मिलते है वो दूर तक चलते हैं सब्र रखिये और भरोसा रखिये..!

10. दिखावे से लोगों को ख़ुश रखा जा सकता है, ईश्वर तो नियत देखता है..!

11. जैसे जैसे आयु बढ़ती है तुम्हें ये अहसास होने लगता है कि तुमने व्यर्थ ही उन लोगों को महत्व दिया जिनका तुम्हारे जीवन में कोई योगदान था ही नहीं ।

12. कुछ पाना है तो खुद पर भरोसा कीजिये, क्योकि सहारे कितने भी सच्चे और अच्छे हो साथ छोड़ ही जाते है।

13. तुम बस अपने आप से मत हारना फिर कोई दूसरा भी तुम्हे हरा नही पाएगा..!

14. अहंकार मत कर किसीको कुछ भी दे कर क्या पता तू दे रहा है वो पिछले जन्म का कर्ज चुका रहा है...!

15. सलाह देने तो हज़ारो आते है लेकिन जब साथ देने की बारी आती है तब केवल भगवान आते है !!

16. जीवन में अच्छा या बुरा कुछ नहीं होता, आपकी सोच और आपके द्वारा किए गये कर्म ही, स्थिति को अच्छा या बुरा बनाते हैं..!

17. हमारे जीवन में समस्याएँ बिना किसी कारण नहीं आती उनका आना एक इशारा है कि हमें अपने जीवन में कुछ बदलना हैं..!

18. जिसके पास सहनशक्ति है वह हर बाधा पार कर जाता है।

19. ज्ञानोंमें भी अति उत्तम उस अन्य परम ज्ञानको मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब मुनिजन इस संसारसे मुक्त होकर परम सिद्धिको प्राप्त हो गये हैं अर्थात् पूर्ण परमात्मा को प्राप्त हो गए हैं।

20. माता रुक्मिणी के भाई रुक्मी एक कुशल योद्धा थे गंधमादन निवासी किपुरुषप्रवर द्रुम का शिष्य होकर चारों पादों से युक्त रुक्मी ने सम्पूर्ण धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त किए थे गाण्डीव धनुष के तेज के समान ही तेजस्वी "विजय" नामक धनुष इन्द्र देव से प्राप्त किए थे जो दिव्य लक्षणों से सम्पन्न धनुष शार्ङ्ग धनुष की समानता करता था



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