एलोवेरा की खेती
एलोवेरा एक नगदी फसल है, इसकी खेती भारत की सभी राज्यों में की जाती है। कुछ जैसे आयुर्वेद से प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियां जैसे डाबर, बैघनाथ, रिलायंस जैसे बड़ी कंपनिया किसानों से सीधा एलोवेरा की फसलें खरीद लेती है।
ग्वारपाठा (एलोवेरा) के लिए जलवायु
गर्म व शुष्क और गर्ग जलवायु की आवश्यकता होती है, इसके लिए औसत तापमान 20 - 25℃ की आवश्यकता होती है।
एलोवेरा के खेती के लिए मिट्टी
एलोवेरा की खेती करने के लिए किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन रेतीली मिट्टी में एलोवेरा की खेती अच्छी मानी गयी है। और एलोवेरा की खेती के लिए काली मट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। जलभराव वाले खेतो में एलोवेरा की खेती करने से किसानों को बचना चाहिए। और एलोवेरा की खेती करने के लिए मिट्टी की पीएच मन 8.5 से अधिक होना चाहिए।
एलोवेरा की खेती में सदैव हाइब्रिडकिस्मो का चुनाव करना चाहिए, क्योंकि हाइब्रिड किस्मो में पल्प की मात्रा अधिक होती है। और भारत मे एलोवेरा की कई उन्नत किस्मे विकसित हो चुकी है। आई.सी1-11271, आई.सी-111280, आई.सी-111269 और आई.सी-111273 इन किस्मो में पाई जाने वाली एलोडीन की मात्रा 20 - 23 % होती है।
सिचाई और उर्वरक
एलोवेरा की खेती में अधिक सिचाई की जरूत नही होती है, सिर्फ मिट्टी में हमेशा नमी होनी चाहिये। इनमे 10 - 15 दिनों में सिचाई करनी होती है। एलोवेरा में अच्छी उपज के लिए 10 से 12 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिए। गोबर की खाद प्रयोग करने से पौधों में वृद्धि तेजी से होती है। और किसान एक वर्ष में एक से अधिक बार कटाई कर सकता है।
एलोवेरा में रोग व कीट
पौधे को नुकसान से बचाने के लिए कीट नियंत्रण बहुत आवश्यक है, एलोवेरा की फसल में मैली बग एक बड़ा खतरा है। और इसमें बीमारी पत्ती में दाग पड़ता हैं। एलोवेरा निराई योजना के लिए 0.1% पेराथियन या 0.2% मैलाथियन की जलीय घोल का छिड़काव करें।
एलोवेरा की खेती के लिए मार्केट की जानकारी
एलोवेरा की खेती में फसलो को भेजने के लिए ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ती है, ऐसे कई कंपनिया है जो फसलो को खरीद ने के लिए किसानों से सीधा अनुबंध करती है। वो खुद खेतो में पहुच कर फसलो को खरीदती है। और कुछ कम्पनीया फसलो को खरीदने के लिए मार्केटB ही उपलब्ध कराती है। अगर किसान चाहे तो किसी आयुर्वेद या हार्बर बनाने वाले कम्पनियो को चुन सकती है।



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