आम
आम का पैदावार लगभग सारे देशो में उगाई जाती है, यह मनुष्य की सबसे पसन्द दीदा फल है। इसके कई प्रजातियों वाली पौधे है। इसका उपयोग चटनी अचार अन्य रूपो में किया जाता है।
भूमि एवं जलवायु
आम की खेती समुन्द्र तल से 600 से 700 मीटर की उचाई पर की जाती है। इसके लिए 23.8 से 26.6 डिग्री तापमान में अति उत्तम होता है। आम की खेती प्रत्येक मिटटी में की जाती है।
उन्नति प्रजातियों के किस्मे
हमारे देश मे उगाई जाने वाली उन्नति किस्मे लगड़ा, तोतापरी, हिमसागर, नीलम, वनराज आदि,
प्रमुख उन्नत किस्मे मल्लिका, आम्रपाली, अम्बिका, दशहरा 4 , गौरव, राजीव, रामकेला आदि।
गड्ढ़ों की तैयारी और पौधों की रोपाई
जिन भागो में अधिक वर्षा होती है, उन भागो में अंत मे पौधों को लगाना चाहिए, उसके बाद 30 से 40 kg प्रति गड्ढे में सड़ी खाद मिट्टी में मिला कर 100 ग्राम क्लोरोपलरिस पाउडर डालकर 10 से 12 मीटर पौधे से पौधे की दूरी होनी चाहिए।
सिचाई
आम का पौधा लगाने के बाद 2 से 3 दिन में सिचाई कर देनी चाइये, उसके बाद 5 वर्ष में 4 से 5 दिन में सिचाई कर देनी चाहिए। फिर जब पेड़ो पर फल लगने लगे तो 4 से 5 दिन में सिचाई आवश्क करना चहिये, सिचाई नाले बना कर और पौधे के नीचे थाला बना कर करना चहिये।
फसल में निराईगुड़ाई और खरपतवारों का नियंत्रण
आम के बाग को साफ रखने के लिए निराई गुड़ाई तथा बागों में वर्ष में दो बार जुताई कर देना चाहिए इससे खरपतवार तथा भूमिगत कीट नष्ट हो जाते हैं इसके साथ ही साथ समय समय पर घास निकलते रहना चाहिए।
रोग और उसका नियंत्रण
आम के रोगों का प्रबन्धन कई प्रकार से करते है। जैसे की पहला आम के बाग में पावडरी मिल्डयू यह एक बीमारी होती है इसी प्रकार से खर्रा या दहिया रोग भी लगता है इनसे बचाने के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में या ट्राईमार्फ़ 1 मिली प्रति लीटर पानी या डाईनोकैप 1 मिली प्रति लीटर पानी घोलकर प्रथम छिड़काव बौर आने के तुरन्त बाद दूसरा छिड़काव 10 से 15 दिन बाद तथा तीसरा छिड़काव उसके 10 से 15 दिन बाद करना चाहिए आम की फसल की एन्थ्रक्नोज फोमा ब्लाइट डाईबैक तथा रेडरस्ट से बचाव के लिए कापर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तरालपर वर्षा ऋतु प्रारंभ होने पर दो छिड़काव तथा अक्टूबर-नवम्वर में 2-3 छिड़काव करना चाहिए। जिससे की हमारे आम के बौर आने में कोई परेशानी न हो। इसी प्रकार से आम में गुम्मा विकार या माल्फमेंशन भी बीमारी लगती है इसके उपचार के लिए कम प्रकोप वाले आम के बागो में जनवरी फरवरी माह में बौर को तोड़ दें एवम अधिक प्रकोप होने पर एन.ए.ए. 200 पी.पी.एम रसायन की 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी घोलकर छिड़काव करना चहिये
कीट और उनका नियंत्रण
आम में भुनगा फुदका कोट, गुझिया कोट, आम के छल खाने वाली सुंडी तथा तना भेदक कीट, आम में डासी मक्खी ये कीट है। आम की फसल की फुदका कीट से बचाव के लिए एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिड़काव फूल खिलने से पहले करते है। दूसरा छिड़काव जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाये, तब कार्बरिल 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करना चाहिए। इसी प्रकार से आम की फसल की गुझिया कीट से बचाव के लिए दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में आम के तने के चारों ओर गहरी जुताई करे, तथा क्लोरोपईरीफ़ास चूर्ण 200 ग्राम प्रति पेड़ तने के चारो बुरक दे.
छेद में डालकर छेद बंद कर देना चाहिए। एस प्रकार से ये सुंडी खत्म हो जाती है। आम की डासी मक्खी के नियंत्रण के लिए मिथाईलयूजीनाल ट्रैप का प्रयोग प्लाई लकड़ी के टुकडे की अल्कोहल मिथाईल एवम मैलाथियान के छ: अनुपात चार अनुपात एक के अनुपात में घोल में 48 घंटे डुबोने के पश्चात पेड़ पर लटकाए ट्रैप मई के प्रथम सप्ताह में लटका दें तथा ट्रैप को दो माह बाद बदल दें
फसल की तुड़ाई
आम की परिपक्व फली की तुड़ाई 8 से 10 मिमी लम्बी डंठल के साथ करनी चाहिए, जिससे फली पर स्टेम राट बीमारी लगने का खतरा नहीं रहता है। तुड़ाई के समय फली की चोट व खरोच न लगने दें, तथा मिटटी के सम्पर्क से बचायें। आम के फली का उनकी प्रजाति, आकार, भार, रंग व परिपत्ता के आधार पर करना चाहिए।
औसतन उपज
रोगों एवं कीटो के पूरे प्रबंधन पर प्रति पेड़ लगभग 150 किलोग्राम से 200 किलोग्राम तक उपज प्राप्त हो सकती है। लेकिन प्रजातियों के आधार पर यह पैदावार अलग-अलग पाई गयी है।



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