मौसम में परिवर्तन से आलू की फसल बहुत अधिक प्रभावित हो रही है। विशेषज्ञ की द्वारा संभावना जताई जा रही है यदि था। पारा गिरता रहा तो आलू की फसल हां को न सिर्फ नुकसान होगा बल्कि न उत्पादन भी कम होगा।
डा. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि पारा निरंतर गिरता चला जा रहा है, वह आलू, टमाटर, मिर्च एवं मटर, शिमला आदि फसलों के लिए बहुत हानिकारक होता है। आलू की फसल में इस समय झुलसा बीमारी का प्रकोप बढ़ता है। किसानों को झुलसा बीमारी का प्रबंधन कर लेना चाहिए। प्रकोप आलू की पत्तियों, डंठल एवं कंद पर दिखाई देने लगता है। झुलसा के लक्षण पत्तियों पर छोटे हल्के पीले हरे अनियमित आकार के धब्बे सबसे पहले दिखाई देते हैं। बढ़ने पर धब्बे चारों ओर अंगूठी नुमा सफेद फफूंदी जमा लेते हैं। इस रोग को आसानी से पहचान लिया जाता है।इसके प्रकोप से बचाव के लिए कृषि विशेषज्ञ ने बताया किसानों को कापर आक्सिक्लोराइड 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव कर देने की सलाह विशेषज्ञ देते हैं।
अधिक प्रकोप की होने पर फफूंदी नाशक मैनकोजेब दो ग्राम दवा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।. यदि यह दवा उपलब्ध नहीं होती है तो काबेंडाजिम नामक फफूंदी नाशक की तीन ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी की दर से घोल बनाकर के छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि आलू में इस समय कंद बनना प्रारंभ हो जाता है। आलू 70 से 80 दिन का हो तो प्रति बीघा 10 किग्रा नाइट्रोजन तथा दो किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करने से आलू में कंदों का आकार एक समान हो जाता है और उत्पादन भी बढ़ जाता है।

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